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राधास्वामी सत्संग ब्यास संस्था की संक्षिप्त जानकारी
राधास्वामी सत्संग ब्यास एक धार्मिक संस्था है; यह उस रूहानियत का प्रचार करती है जो हर धर्म की बुनियाद है। शुरू से ही इस संस्था का मार्गदर्शन देहधारी सतगुरु करते आए हैं। इसके अलावा विश्व भर में 100 से भी ज़्यादा संस्थाएँ इस आध्यात्मिक संस्था से जुड़ी हैं। ये संस्थाएँ राधास्वामी सत्संग ब्यास (भारत) के रूहानी सिद्धांतों और लक्ष्य का अनुसरण करती हुईं, इसके मिशन का समर्थन करती हैं।
भारतीय भाषा में ‘राधास्वामी’ का मतलब है ‘आत्मा का मालिक’, ‘सत्संग’ का मतलब है ‘जिज्ञासुओं का समूह’ जो सच्चाई की तलाश में है। ‘ब्यास’ उत्तर भारत में स्थित एक छोटा-सा शहर है, जो इस संस्था का हैडक्वार्टर है। ऐसी और भी कई संस्थाएँ हैं जो ‘राधास्वामी’ लफ़्ज़ का प्रयोग करती हैं, लेकिन इस संस्था का उनसे कोई संबंध नहीं है।
राधास्वामी सत्संग ब्यास की स्थापना 1891 में भारत में हुई। धीरे-धीरे संतमत दूसरे देशों में फैलने लगा। आज यह संस्था विश्व में 90 से अधिक देशों में सत्संग आयोजित करती है। यह एक ग़ैर-लाभकारी संस्था है जिसका किसी राजनीतिक या व्यावसायिक संस्था से कोई संबंध नहीं है।
हर धर्म का आधार रूहानियत है। समय बीतने के साथ और सामाजिक मूल्यों में बदलाव की वजह से अकसर रूहानियत की बुनियादी शिक्षाओं पर नियमों और रीति-रिवाजों की परत चढ़ने लगती है, जिसके कारण वे औपचारिक धर्म का रूप ले लेती हैं। इस संस्था की गतिविधियाँ बड़े पैमाने पर फैली हुई हैं, फिर भी इस संस्था ने रूहानियत का सार और शिक्षाओं की सादगी क़ायम रखी है। राधास्वामी सत्संग ब्यास की शिक्षाओं का मूल विचार है कि मनुष्य की ज़िंदगी का मक़सद रूहानियत हासिल करना है – परमात्मा की पहचान करना जिसका हर घट में वास है। निजी अनुभव के बाद ही यह एहसास होता है कि परमात्मा एक है और हम सब उसके प्रेम की अभिव्यक्ति हैं।
इस संस्था की शिक्षाओं में देहधारी आध्यात्मिक गुरु की अहम भूमिका है, जो ज़िंदगी का मक़सद बताते हैं और संगत का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें परमार्थ से जुड़ने का तरीक़ा समझाते हैं – यह तरीक़ा है रोज़ाना भजन-सिमरन का अभ्यास। मौजूदा गुरु बाबा गुरिंदर सिंह जी और हुज़ूर जसदीप सिंह जी हैं। ये अपने परिवार के साथ उत्तर भारत में स्थित हैडक्वार्टर – ब्यास – में रहते हैं।
सतगुरु के निर्देशानुसार भजन-सिमरन के अभ्यास से मनुष्य अपने अंतर में परमात्मा की मौजूदगी महसूस कर सकता है। यह अभ्यास एक निजी कार्यवाही है; हर इनसान अपने घर के एकांत कोने में यह अभ्यास कर सकता है। संगत के लोग एक ऐसी जीवनशैली अपनाते हैं जो उनकी रूहानी तरक़्क़ी में सहायक होती है; साथ ही वे अपने परिवार, दोस्तों और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी अच्छी तरह निभा पाते हैं। इस मार्ग पर किसी तरह के रीति-रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं; कोई छोटे-बड़े की श्रेणी नहीं है, किसी तरह की कोई माँग नहीं की जाती, और न ही सत्संग में आने के लिए ज़ोर दिया जाता है। इस मार्ग पर चलने के लिए लोगों को अपनी सांस्कृतिक पहचान या धर्म बदलने की ज़रूरत नहीं है।
भजन-सिमरन के अभ्यास के लिए ज़रूरी है कि संगत शाकाहारी भोजन अपनाए, शराब, तंबाकू और नशीले पदार्थों के सेवन से परहेज़ करे और उच्च नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए जीवन गुज़ारे। शाकाहारी भोजन अपनाना इस बात की प्रेरणा है कि सृष्टि के सभी जीवों के प्रति, दया और सम्मान होना चाहिए; और यह भी मानना है कि बेवजह किसी की ज़िंदगी छीन लेने से उसका कर्ज़ चुकाना पड़ता है। नशीले पदार्थों से परहेज़ रखने से इनसान के भजन-सिमरन में एकाग्रता बढ़ती है और मन शांत रहता है। संगत को प्रेरित किया जाता है कि वह आत्मनिर्भर बने, और समाज पर बोझ न बने। संगत अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने के लिए आज़ाद है; और अपनी इच्छा से किसी भी धर्म और संस्कृति से संबंध क़ायम कर सकती है। यह संस्था संगत की निजी ज़िंदगी में किसी भी तरह से दख़ल नहीं देती।
इस संस्था के सिद्धांतों की बुनियाद है – निष्काम सेवा, जो राधास्वामी सत्संग ब्यास से जुड़ी सभी गतिविधियों का आधार है। सभी प्रशासनिक कार्य, भारत और बाहर के देशों में सत्संग घरों का निर्माण, डेरा ब्यास में सैकड़ों-हज़ारों की तादाद में आई संगत के लिए भोजन की व्यवस्था, शिक्षा के प्रसार के लिए लिखी किताबें, पत्रिकाएँ और उनका अनुवाद - ये सभी सेवाएँ संगत अपनी इच्छा से करती है। सेवा के महत्त्व के बारे में महात्मा गांधी के वचन हैं: “दूसरों की सेवा में पूरी तरह समर्पित हो जाना ही ख़ुद की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।” ऐसा मानना है कि सेवा करने से इनसान ख़ुदी को ख़त्म करता है और विनम्र बनता है, और यही रूहानी ज़िंदगी की नींव है।

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देखें: विदेश में सत्संग सेंटर्स की जानकारी के लिए वेबसाइट:
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देखें: विदेश में किताबें ख़रीदने के लिए वेबसाइट:
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देखें: भारत में किताबें ख़रीदने के लिए वेबसाइट:
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राधास्वामी सत्संग ब्यास को 2018 में संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामजिक परिषद् ने ‘एक ख़ास परामर्श देनेवाली संस्था’ का दर्जा दिया है। |
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राधास्वामी सत्संग ब्यास का सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे इंस्टाग्राम, फेस्बुक या लिंक्डइन पर कोई प्रोफ़ाइल नहीं है। संस्था के नाम से ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट्स का राधास्वामी सत्संग ब्यास से कोई सम्बंध नहीं है।
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